« जो ज्ञान ऋषियों को सैकड़ों वर्षों की तपस्या से नहीं मिल पाता।

« जिस ज्ञान को हजारों वर्षों से मनुष्य खोज नहीं पाया। 

« वही ज्ञान ब्रह्मवेद के रूप में सरल भाषा में विश्व को परमब्रह्म का वरदान है।

« मनुष्य को स्वयं ब्रह्मवेद का अध्य्यन करना चाहिए।

« ब्रह्मवेद को निरंतर पढ़ें अथवा सुने। 

« ऐसा कोई प्रश्न नहीं जिसका उत्तर ब्रह्मवेद से प्राप्त नहीं किया जा सकता। 

« विश्व का कोई अन्य धर्मग्रन्थ अकेला पूर्ण नहीं। 

« ब्रह्मवेद एकमात्र ज्ञान का वह भंडार है जो अपूर्णता को पूर्ण करता है।

 

 

परमब्रह्म से मिले सभी ज्ञान सूत्रों को यथारूप में अन्यजन को समर्पित करने पे हर्षित हूँ।  सभी पढ़नेवाले चिंतन और अनुसरण करके स्वयं तथा मानवता को उन्नत करें। :- “राकेश प्रसाद पुरोहित “